वायु प्रदूषण के बढ़ने से शरीर में खनिज की मात्रा कम होने के कारण हड्डियों के टूटने का खतरा बढ़ सकता है। एक प्रमुख अध्ययन में यह दावा किया गया है। द लैनसेट प्लैनेटरी हेल्थ मैगजीन में प्रकाशित अध्ययन में पहली बार अस्पताल में उन समुदायों के लोगों के हड्डियां टूटने के मामलों के बारे में जानकारी दी गई है, जो ऐसी जगहों पर रहते हैं जहां पार्टिक्यूलेट मैटर (पीएम) उच्च स्तर पर है, जो कि वायु प्रदूषण का उच्च घटक है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने वायु प्रदूषण को इस प्रकार परिभाषित किया है, 'वायु प्रदूषण एक ऐसी स्थिति है जिसमें वातावरण में मनुष्य और पर्यावरण को हानि पहुंचाने वाले तत्व ज्यादा मात्रा में जमा हो जाते हैं।' वैसे तो आज पूरी दुनिया वायु प्रदूषण की समस्या से जूझ रही है, लेकिन भारत के लिए यह समस्या कुछ ज्यादा ही घातक होती जा रही है। डब्लूएचओ की एक रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया के 20 सबसे प्रदूषित शहरों में 14 भारत के ही हैं।
हमारे वातावरण में कई गैसें एक आनुपातिक संतुलन में होती हैं। इनमें ऑक्सीजन के साथ कार्बन डाइ ऑक्साइड, कार्बन मोनो ऑक्साइड आदि शामिल हैं। इनकी मात्रा में थोड़ा भी हेरफेर होने से संतुलन बिगड़ने लगता है और हवा प्रदूषित होने लगती है। मानवजनित गतिविधियों के चलते वायुमंडल में कार्बन डाइ ऑक्साइड, कार्बन मोनो ऑक्साइड और मीथेन जैसी गैसों की मात्रा बढ़ने लगी है। साथ ही फैक्ट्रियों-वाहनों का धुआं और निर्माण कार्यों से उठने वाली धूल इस संतुलन को और बिगाड़ने पर तुली हुई है।
सर्दियों में यह स्थिति और भी घातक होने लगती है। इस दौरान हवा में मौजूद नमी के चलते ये गैसें और धूल वातावरण में धुंध की एक मोटी चादर फैला देती है जिससे हालात किसी गैस चैंबर की तरह हो जाते हैं। यह स्थिति कितनी गंभीर है इसका अंदाजा इन आंकड़ों से भी लगता हैः
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने वायु प्रदूषण को इस प्रकार परिभाषित किया है, 'वायु प्रदूषण एक ऐसी स्थिति है जिसमें वातावरण में मनुष्य और पर्यावरण को हानि पहुंचाने वाले तत्व ज्यादा मात्रा में जमा हो जाते हैं।' वैसे तो आज पूरी दुनिया वायु प्रदूषण की समस्या से जूझ रही है, लेकिन भारत के लिए यह समस्या कुछ ज्यादा ही घातक होती जा रही है। डब्लूएचओ की एक रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया के 20 सबसे प्रदूषित शहरों में 14 भारत के ही हैं।
हमारे वातावरण में कई गैसें एक आनुपातिक संतुलन में होती हैं। इनमें ऑक्सीजन के साथ कार्बन डाइ ऑक्साइड, कार्बन मोनो ऑक्साइड आदि शामिल हैं। इनकी मात्रा में थोड़ा भी हेरफेर होने से संतुलन बिगड़ने लगता है और हवा प्रदूषित होने लगती है। मानवजनित गतिविधियों के चलते वायुमंडल में कार्बन डाइ ऑक्साइड, कार्बन मोनो ऑक्साइड और मीथेन जैसी गैसों की मात्रा बढ़ने लगी है। साथ ही फैक्ट्रियों-वाहनों का धुआं और निर्माण कार्यों से उठने वाली धूल इस संतुलन को और बिगाड़ने पर तुली हुई है।
सर्दियों में यह स्थिति और भी घातक होने लगती है। इस दौरान हवा में मौजूद नमी के चलते ये गैसें और धूल वातावरण में धुंध की एक मोटी चादर फैला देती है जिससे हालात किसी गैस चैंबर की तरह हो जाते हैं। यह स्थिति कितनी गंभीर है इसका अंदाजा इन आंकड़ों से भी लगता हैः
- दुनिया के 90 प्रतिशत से भी ज्यादा बच्चे जहरीली हवा में सांस लेने को मजबूर हैं।
- घरेलू वायु प्रदूषण से हर साल 38 लाख लोगों की मौत हो जाती है।
- दुनिया भर के 20 सबसे प्रदूषित शहरों में से 14 भारत के हैं।
- बाहरी वातावरण में मौजूद वायु प्रदूषण दुनियाभर में हर साल करीब 42 लाख लोगों की मौत का कारण बनता है।
- वायु प्रदूषण के कारण सबसे अधिक मौतें (43 प्रतिशत) फेफड़ों से संबंधित बीमारियों से होती हैं।