कुल्लू। कुल्लू दशहरा 2019 मंगलवार से शुरू हो रहा अंतरराष्ट्रीय दशहरा उत्सव कुल्लू अपने आप में एक पूरा 358 सालों का इतिहास समेटे है। तीन शताब्दियों से यहां पर परंपराएं आज भी कायम हैं। इस बार दशहरा 8 से 14 अक्टूबर तक चलेगा और पूरा कुल्लू शहर देवताओं के आगमन और भव्य मिलन का गवाह बनेगा। कुल्लू जिले में 2000 से अधकि छोटे बड़े देवता हैं, लेकिन घाटी के देवता भगवान रघुनाथ हैं। माता हिडिंबा मंजूरी और देवी भेखली के इशारे के बाद से कुल्लू दशहरा का आगाज होता है।
पिछले वर्ष 260 देवता इस दशहरा में आए थे, लेकिन इस बार 331 देवताओं को निमंत्रण दिया गया है। भगवान रघुनाथ अपने स्थायी शिविर से छोटे रथ से निकलने के बाद बड़े रथ पर विराजमान होते हैं और उसके बाद निकलने वाली शोभायात्रा के साथ यहां अंतरराष्ट्रीय दशहरा का आगाज होता है। भगवार रघुनाथ के रथ को कोई भी व्यक्ति खींच सकता है। दशहरे में घाटी के देवता 200 किलोमीटर दूर तक से आते हैं।
मुहल्ला में होता है देवताओं का महामिलन
कुल्लू दशहरे में प्रतिदिन शाम को राजा की शोभायात्रा निकलती है। इसे जलेब कहते हैं । यह राजा के अस्थाई शिविर से निकलती है और मैदान का चक्कर लगाकर वापिस शिविर में लौटती है। जलेब में राजा को पालकी में बिठाया जाता है जिसे सुखपाल कहते हैं। इस जलेब में आगे नारसिंह की घोड़ी चलाई जाती है। अलग-अलग दिन अलग-अलग घाटियों के देवी देवता अपने वाद्य यंत्रों सहित इस जलेब में भाग लेते हैं । दशहरे के छठे दिन को मुहल्ला कहते हैं। इस दिन सभी देवताओं का महामिलन होता है। सभी देवी देवता रघुनाथ जी के शिविर में पहुंचते हैं और आपस में बड़े हर्षोउल्लास से मिलते हैं। उसके बाद एक एकनकरके देवताओं के रथ राजा के शिविर में जाकर अपनी लिखित उपस्थिति दर्ज करवाते हैं।
देवता करते हैं ट्रैफिक कंट्रोल, दो देवता पुलिस के पहरे में
भगवार रघुनाथ के रथ निकलने पर ट्रैफिक व्यवस्था का जिम्मा पुलिस की जगह देवता ही संभालते हैं। सैंज घाटी के देवता धूमल रथ के आगे चलकर भगवान के रथ के लिए रास्ता बनाते हैं। सदियों से चल रही इस परंपरा को आज भी जस का तस पालन किया जाता है। इसी तरह भगवान की शोभायात्रा के साथ चलने के लिए देवता बालूनाग और ऋृंगा ऋषि में विवाद होता है और इस कारण इन दोनों देवताओं को पुलिस के पहरे में रखा जाता है। इनके विवाद को धुर विवाद कहा जाता है।
चार जगह और चलते हैं रघुनाथ के रथ
अंतरराष्ट्रीय कुल्लू दशहरा के अलावा मणिकर्ण, ठाउगा, वशिष्ठ और हरिपुर में भी दशहरे का आयोजन होता है। यहां पर भी सात दिनों तक महोत्सव चलता है। मणिकर्ण में बाकायदा रथ भी बनाया जाता है जिसमें भगवार रघुनाथ को रखा जाता है। यहां पर हालांकि देवता बड़ी संख्या में नहीं होते लेकिन परंपराओं का पालन पूरी तरह से किया जाता है।
कुल्लू दशहरा का इतिहास
कुल्लू के राजा जगत सिंह को किसी ने गलत सूचना दी कि पार्वती घाटी के टिप्परी गांव के एक पंडित दुर्गादत्त के पास मोतियों का भंडार है, वह राजा के पास होना चाहिए। राजा ने बिना सोचे समझे लोगों की बातों में आकर ही पंडित से उन मोतियों को लाने भेजा लेकिन उसके पास मोती नहीं थे और उसने आत्महत्या कर ली। ब्राह्मण हत्या का खुद को दोषी मानकर राजा दुखी रहने लगे और उनको कुष्ठ रोग होने लगा। इसके बाद उन्होंने अपनी समस्या झिड़ी नामक स्थान पर पयहारी बाबा नाम के सिद्ध वैष्णव संत को बताई। उन्होंने राजा को भगवान रघुनाथ को अयोध्या से लाने को कहा। इसके बाद भगवान रघुनाथ की मूर्ति कुल्लू लाई गई। राजा इसके बाद बीमारी से ठीक हो गया और उसके बाद यहां पर दशहरे का आयोजन शुरू हुआ।