मत्स्य जीवी सहकारी समिति लिमिटेड नाम से यह संस्था ग्राम कुडरा(कुरसेली)के नाम से पंजीकृत हुई थी,जिसके द्वारा विगत दिनों गेहूँ की भरपूर खेती की गई थी,संस्था द्वारा लगभग1250000/बारह लाख पचास हज़ार प्रति वर्ष लगान के रूप में सरकारी खजाने में जमा किया जा रहा है,किन्तु प्रशासनिक अधिकारियों ने इस संस्था से कोई भी प्रतिभूति राशि नही जमा कराई जो गलत है प्रशानिक अधिकारियों को चाहिए था कि इस संस्था से प्रतिभूति के रूप मे धन जमा करवाये फिर यदि कभी ऐसा हो कि उपरोक्त संस्थान निश्चित धन न दे तब प्रतिभूति राशि से अपना देय धन वसूलकर उसकी बाध्यता समाप्त कर सके ऐसा करने से शासन को उस संस्था से हानि होने की कोई गुंजाइश नही बचती।
वर्तमान समय मे यह संस्था केवल मत्स्य पालन हेतु आवंटित भूमि में सिंघाड़े की खेती की जा रही है जिसे फोटो में स्पष्ट देखा जा सकता है,और इतना ही नही इसी भूमि में सिंघाडे के साथ साथ मत्स्य पालन भी किया जा रहा है,सूत्रों के अनुसार पता चला है कि मछली पालन के लिए बीज भी संस्था द्वारा मत्स्य विभाग हरदोई से ही प्राप्त किये गए हैं, आपको बताते चले कि मछली पालन और सिंघाड़े की फसल एक ही समय मे एक ही जलाशय में करने से मछली पालन के व्यवसाय को अप्रत्याशित क्षति पहुंचाने के साथ ही साथ यह मछली खाने वाले व्यक्ति को गम्भीर रूप से बीमार बना सकती है कारण सिंघाडे की अच्छी पैदावार के लिए मछलियों के स्वास्थ्य और जीवन तक के लिए घातक कीटनाशक का इस्तेमाल किया जाना,गौरतलब करने की बात यह है कि एक जलाशय या तालाब में एक समय मे एक ही फसल की पैदावार होनी चाहिए उससे भी हास्यास्पद यह है कि संस्था द्वारा उपरोक्त सिंघाडे की फसल को दो भागों में बांस की बल्लियों के सहारे बांटा गया है जिसके पीछे भी शायद किसी अन्य व्यक्तियों को साझेदारी में फसल दिया जाना या आपस मे मतभेद होना है बंटवारे की बात उक्त जलाशय का बारीकी से स्थलीय निरीक्षण करने से समझ आती है यह जलाशय सैकड़ों एकड़ में फैला है,बल्लियों के सहारे हुए इस बंटवारे में सिंघाडे की फसल का बंटवारा तो आसानी से हो जाना समझ आता है लेकिन अब यह भी देखने की बात है मछली का बंटवारा कैसे करेंगे?
मत्स्य विभाग की मिलीभगत से नियमो को दरकिनार कर यह सहकारी समिति कर रही है घोर लापरवाही