नई दिल्ली। महाराष्ट्र की उद्धव ठाकरे सरकार के पहले विस्तार में वो सब कुछ देखने को मिला जिसकी पहले से ही उम्मीद की जा रही थी। इस कैबिनेट विस्तार में कुल 36 मंत्रियों ने शपथ ली है। हालांकि इस विस्तार में जहां कई नेताओं के सगे संबंधियों को कैबिनेट बर्थ मिली वहीं शिवसेना के तेजतर्रार नेता संजय राउत के भाई सुनील राउत को शामिल नहीं किया गया। आपको बता दें कि संजय राउत शिवसेना के उन तेजतर्रार नेताओं में शामिल हैं जो पार्टी का रुख कड़ाई से रखते आए हैं। कई बार वह अपने तीखे बयानों के चलते भी सुर्खियों में रहे हैं। वह पार्टी के राज्य सभा सांसद होने के अलावा सामना अखबार से भी जुड़े हुए हैं। इसके अलावा उन्होंने ही बाला साहब ठाकरे के जीवन पर बनी फिल्म 'ठाकरे' के लेखक भी रहे हैं। वह काफी लंबे समय से शिवसेना से जुड़े रहे हैं।
यह देखना बेहद दिलचस्प है कि अजित पवार ने जहां एनसीपी-शिवसेना-राकांपा को हैरत में डालते हुए राज्य में कुछ घंटों की भाजपा के साथ सरकार बनाई और खुद डिप्टी सीएम बन बैठे थे, उन्हें इस बार भी दोबारा यही पद दे दिया गया। वहीं सुनील राउत की बात की जाए तो उन्होंने पार्टी के प्रचार में कोई कमी नहीं छोड़ी थी। महाराष्ट्र में चली राजनीतिक उठापठक के दौरान भी सुनील की पार्टी के प्रति निष्ठा पर कोई अंगुली नहीं उठी थी। इसके बाद भी उन्हें मंत्रिमंडल से बाहर रखा गया।
मंत्रिमंडल में सुनील का नाम शामिल करने को लेकर भले ही कोई वजह अब तक सामने नहीं आई है लेकिन, इसको लेकर संजय राउत ने साफतौर पर कहा कि अपने भाई के लिए उन्होंने कभी कुछ नहीं मांगा। उन्होंने मंत्रिमंडल विस्तार के बाद एक निजी चैनल पर कहा कि कहा कि हम हमेशा देने वाले रहे हैं। पार्टी में हमारा योगदान पहले की ही तरह है। उन्होंने ये भी साफ कर दिया कि सुनील की भी ऐसी कोई मंशा नहीं थी। संजय का कहना था कि गठबंधन की सरकार में सभी को कुछ न कुछ देना होता है। उन के मुताबिक हर पार्टी में काबिल लोग हैं, लेकिन जितना जिसके कोटे में आता है मिल जाता है। ऐसे में जिसको कुछ नहीं मिला उन्हें संयंम रखना चाहिए।