मीडियाकर्मी के लिये कुछ लाइनें

कट रही है जिन्दगी, जैसे जी रहें हैं वनवास में।
हम तो है मीडियाकर्मी , ड्यूटी करना है हर हाल में।


हम तड़पते है ड्यूटी में, परिवार चिन्तित है गांव में।
जिंदगी मानव ठहर सी गई है, बेडी जकड़ी हो जैसे पांव में।


सर्दियां खत्म हो गई, गर्मी ने भी पकड़ी रफ्तार है।
ताना मारते लोग कहते हैं, बैठा कर पैसा दे रहा प्रेस का मालिक ।


ताना से नही साहब फ्री में देश के प्रति डियूटी निभाते है मिडिया कर्मी।


घर में रासन नहीं, फिर भी ड्यूटी जाते है।


सारी दुकानें बंद हो जाती है, जब हम वापस आते हैं।


मां -बाप सिसककर पूछ रहे हैं, बेटा कैसे खाते हो।


जब पूरा देश बंद है तो, तुम ड्यूटी क्यों जाते हो।


यहां सब कुछ मिल रहा है, झूठ बोल मां को समझाते है।


देश के लिए समर्पित यह जीवन, इसलिए हम ड्यूटी जाते हैं।


हम तो मीडियाकर्मी है साहब,फ्री में केवल अपना ड्यूटी निभाते है  सभी पत्रकार भाइयों के लिऐ


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