लखनऊ। एडोवकेट प्रमोद सिंह यादव ने प्रावशी मजदूरों पर हो रहे अत्याचार को देखते हुवे केंद्र सरकार एवं योगी सरकार पर लापरवाही के लागये गंभीर आरोप, जब देश में कोरोना महामारी के मामले देश में कम थे उसी समय मजदूरों के पलायन को क्यों नहीं रोका गया जहां पर वह वर्कर की तरह काम करते थे उन फैक्ट्री मालिकों को निर्देश क्यों नहीं दिया गया कि उनके खाने-पीने एवं रहने का पूरा इंतजाम फैक्ट्री मालिकों को करना होगा।
यदि कोई मजदूर किसी प्रदेश से अपने प्रदेश में जाना चाहता है तो उनको भेजने की जिम्मेदारी प्रदेश सरकार की होगी या फिर प्रदेश में रहने खाने की उचित व्यवस्था प्रदेश सरकार को करनी चाहिए थी। अगर शक्ति से कानून व्यवस्था बनाकर लागू किया गया होता तो आज एक भी मजदूर पलायन करके एक देश से दूसरे प्रदेश में ना जाता और न ही सड़क हादसों में हजारों मजदूरों की मौत होती।
उत्तर प्रदेश योगी सरकार को हिटलर जैसा फरमान लखनऊ की सीमाएं सील करने का आदेश ना देना पड़ता और तो और मजदूरों की दशा इधर कुआं उधर खाई जैसी ना होती, जो आज सड़कों पर भूखे प्यासे जिंदगी मौत से लड़ रहे हैं इससे लगता है कि कोरोना से ज्यादा दुर्घटना एवं भूख प्यास की वजह से मौतें हो जाएंगी।
योगी सरकार को चाहिए था की सभी जिलाधिकारियों को निर्देशित करे कि हर बॉर्डर पर खाली मैदानों या विद्यालयों में उचित व्यवस्था करके वहां पर उनके रहने खाने एवं ट्रीटमेंट का इलाज मुहैया कराया जाए साथ ही कोरन्टीन कर मजदूरों को निजी स्थान आवास पर छोड़ा जाए।
लेकिन यह सब न करके भाजपा सरकार का आदेश है कि प्रवासी मज़दूरों को उत्तर प्रदेश के बार्डर पर न घुसने देंगे, न सड़क या रेल ट्रैक पर चलने देंगे, न ट्रक-दुपहिया से जाने देंगे भाजपाई ग़रीब विरोधी नीतियाँ ही लोगों को ग़ैर-क़ानूनी काम करने के लिए बाध्य कर रही हैं।
प्रवासी मजदूर लॉकडाउन होने के बाद कुछ समय तो इस लिए चुप चाप बैठे रहे की सायद सरकार उनको खाने पीने की व्यवस्था एवं उनको घर भेजने के कुछ इंतेजाम करेगी लेकिन सरकार ने आज तक प्रवासी मजदूरों के हित के बारे में कोई भी अहम फैसला नही लिया जिसको देखते हुवे प्रवासी मजदूर मजबूर होकर भूखे प्यासे हजारों किलोमीटर की दूरी पैदल ही चल पड़े जिसमे न जाने कितने मजदूरों ने रास्ते में ही दम तोड़ दिया। पता नही कितने परिवार खून के अंशु रोये है इस बीमारी में तो कितने परिवार ही नष्ट हो गए तथा दर-दर की ठोकरे खाने के लिए विवश हो गए जिन्हें हम कहते है कि देश के विकास में मजदूर का सबसे बड़ा हाँथ होता है उन्हीं मजदूरों पर आज सबसे बड़ी गाज गिरी है।