उत्तर प्रदेश कैबिनेट ने तहसीलदार व तहसीलदार (न्यायिक) को असिस्टेंट कलेक्टर का अधिकार देने से संबंधित राजस्व विभाग के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है। इससे इन अधिकारियों की ग्राम समाज की संपत्ति पर अवैध कब्जे से जुड़े प्रकरण पर कार्यवाही का अधिकार बहाल हो गया है। यह निर्णय राजस्व संहिता लागू होने की तिथि से प्रभावी होगा। इससे तहसीलदार न्यायालयों द्वारा पूर्व में पारित फैसलों की वैधता भी बनी रहेगी।
राजस्व परिषद ने अजमत अली बनाम कलेक्टर लखनऊ वाद के फैसले में तहसीलदार स्तर से ग्राम समाज की संपत्ति पर अवैध कब्जे के संबंध में पारित आदेश को अवैध करार दिया था। निर्णय देने वाले राजस्व परिषद के तत्कालीन सदस्य गुरदीप सिंह ने व्यवस्था दी थी कि राजस्व संहिता-2006 लागू होने से पहले यूपी जमीदारी विनाश एवं भूमि सुधार अधिनियम 1950 की धारा-122-बी में ग्राम समाज की भूमि पर अवैध कब्जे से जुड़े मामलों की सुनवाई का अधिकार सहायक कलेक्टर को था और सभी तहसीलदार को सहायक कलेक्टर घोषित किया गया था।
दूसरी ओर, राजस्व संहिता में ग्राम सभा की संपत्ति की क्षति, दुरुपयोग और गलत अधिभोग को रोकने की शक्ति सहायक कलेक्टर को तो दी गई, लेकिन तहसीलदार को सहायक कलेक्टर घोषित नहीं किया गया। इसी आधार पर उन्होंने तहसीलदार न्यायालय द्वारा पारित आदेश को क्षेत्राधिकार के बाहर जाकर किया गया फैसला बताते हुए निरस्त कर दिया था।
‘अमर उजाला’ ने इस फैसले के व्यापक असर का उल्लेख करते हुए एक नंबवर को लिखा था कि इस फैसले से तहसीलदार न्यायालयों के स्तर से किए गए सभी निर्णय भी अवैध हो गए हैं। इस विधिक विसंगति को दूर करने के लिए राजस्व संहिता में संशोधन कर तहसीलदार को सहायक कलेक्टर घोषित करने का विकल्प भी बताया गया था। प्रदेश कैबिनेट ने राजस्व संहिता में संशोधन कर संहिता की धारा-67 में संशोधन कर सभी तहसीलदार व तहसीलदार न्यायिक को असिस्टेंट कलेक्टर का अधिकार दे दिया है।