कोरोना वायरस की सियासी पिच पर फिलहाल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सब पर भारी

कोरोना को लेकर अब सियासत शुरू, कांग्रेस ने कहा ज्यादा दिन चुप रहने का पूरा फायदा नरेंद्र मोदी और भाजपा उठा लेंगे


नई दिल्ली ।  कोरोना संक्रमण के खिलाफ राष्ट्रीय लड़ाई की शुरुआती एकता में अब सियासी दरारें साफ दिखने लगी हैं।  कोरोना को लेकर सियासत दोनों तरफ से हो रही है सत्ता पक्ष की तरफ से भी और विपक्ष की तरफ से भी। कोरोना की पिच पर होने वाले सियासी मैच के पहले राउंड में सियासत पर्दे के पीछे हो रही थी, अब खुलकर होती नजर आने लगी है। हालांकि अभी तक इस पूरे सियासी खेल में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी विपक्ष पर भारी पड़े हैं। यहां तक कि मंगलवार तक केंद्र सरकार की विशेष मेडिकल जांच टीम भेजे जाने के विरोध में तीखे तेवर दिखा रहीं पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी भी अब नरम पड़ गई हैं और केंद्र सरकार के कठोर रुख के बाद राज्य सरकार ने केंद्रीय जांच टीम को राज्य में काम करने की अनुमति दे दी है।  वहीं लॉकडाउन में ढील देने को लेकर केरल सरकार का रुख पहले ही नरम पड़ गया है। भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता डॉक्टर विजय सोनकर शास्त्री कहते हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जिस तत्परता और कुशलता से कोरोना के खिलाफ पूरे देश को एकजुट करके इस राष्ट्रीय संकट में देश का नेतृत्व किया है वह बेमिसाल है। शास्त्री के मुताबिक हर बात में प्रधानमंत्री के काम में कमियां निकालने वाले विपक्ष को भी इस बार कोई कमी ढूंढे नहीं मिल रही है। क्योंकि प्रधानमंत्री ने दलगत राजनीति से ऊपर उठकर इस संकट से निपटने के लिए काम किया है और दिन रात वह जिस निष्ठा से जुटे हुए हैं, उससे कोरोना से लड़ने वाले डाक्टरों, चिकित्सा कर्मियों, पुलिस कर्मियों, सुरक्षा बलों, स्थानीय प्रशासनों, स्वंयसेवी संगठनों समेत सबका  हौसला बढ़ गया है। पूरी विश्व हमारे प्रधानमंत्री की प्रशंसा कर रहा है। विजय सोनकर शास्त्री के दावे के बावजूद लॉकडाउन के दूसरे चरण में कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी कभी कोरोना जांच की गति को लेकर, कभी प्रवासी मजदूरों की समस्या पर तो कभी छोटे मझोले उद्यमियों को लेकर तो कभी किसानों और खेतिहर मजदरों को लेकर लगातार सरकार पर सुझाव की शक्ल में सवाल दाग रहे हैं। वहीं बंगाल में एक साल बाद होने वाले विधानसभा चुनावों के मद्देनजर कोरोना को लेकर सियासी गोलबंदी तेज होने लगी है। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने दबी आवाज में विरोध के सुर निकाले तो हैं और जांच किटों की गुणवत्ता को लेकर सवाल दागे हैं। उधर मध्य प्रदेश में कोरोना संकट से निपटने में शिवराज सिंह चौहान की सरकार पर असफलता का आरोप लगाते हुए कांग्रेस हमलावर है तो पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने केंद्र से राज्यों को ज्यादा धन देने की मांग छेड़ दी है।  विपक्ष के इन छाया हमलों के बावजूद कोरोना सियासत की पिच पर बाजी फिलहाल मोदी के ही हाथ है। राष्ट्रीय संकट के इस दौर में लड़ाई की कमान पूरी तरह प्रधानमंत्री ने संभाल रखी है और विपक्ष के सभी दिग्गजों का उनके पीछे खड़ा होना वक्त की जरूरत और मजबूरी दोनों है। इसके बावजूद जिसे जहां मौका मिलता है चूक नहीं रहा है। पालघर में दो साधुओं की हत्या को लेकर भाजपा ने स्थानीय स्तर पर महाराष्ट्र की उद्धव सरकार पर हमले किए तो बचाव में शिवसेना और एनसीपी के साथ साथ कांग्रेस भी आ गई। कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सिंह सुरजेवाला ने इसके लिए भाजपा को आड़े हाथों लिया। कांग्रेस को लग रहा है कि ज्यादा दिन चुप रहने का पूरा फायदा नरेंद्र मोदी और भाजपा उठा लेंगे और देश जब भी कोरोना आपदा से मुक्त होगा तब उसका सारा श्रेय मोदी खुद ले लेंगे।  इसलिए कांग्रेस ने भी तलवारें भांजना शुरू कर दिया है। कांग्रेस प्रवक्ता राजीव त्यागी का कहना है कि कोरोना संकट राष्ट्रीय चुनौती है और इन नाजुक वक्त में कांग्रेस सरकार को किसी परेशानी में नहीं डालना चाहती इसलिए पार्टी सरकार के कदमों का स्वागत और समर्थन करती है। लेकिन जनता की समस्याओं और कोरोना के खिलाफ लड़ाई में कमजोरियों को सामने लाना भी कांग्रेस की जिम्मेदारी है और पार्टी इससे पीछे नहीं हटेगी। दरअसल कोरोना संक्रमण की चुनौती जब भारत में शुरू हुई थी तब एकबारगी लगा था कि स्वास्थ्य और अर्थव्यवस्था की यह दोहरी चुनौती कहीं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा की केंद्र सरकार के लिए भारी न पड़ जाए और विपक्ष इसका राजनीतिक लाभ न उठा ले।  जिस तरह से राहुल गांधी ने ट्विटर के जरिए लगातार मोदी सरकार पर कोरोना बाण छोड़ने शुरू किए थे, उससे यह धारणा बन रही थी कि कोरोना के खिलाफ लड़ाई को विपक्ष सरकार के खिलाफ मुद्दा बना सकता है।  लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी न सिर्फ राजनीति के चतुर खिलाड़ी हैं बल्कि वह विपरीत अवसर को भी अपने पक्ष में मोड़ने में सिद्धहस्त हैं। उन्होंने बेहद सधे हुए तरीके से कोरोना के खिलाफ भारत की लड़ाई को होली से कुछ पहले खुद को होली मिलन के सारे कार्यक्रमों से दूर रहने की घोषणा करके शुरू की। मोदी का अनुकरण करते हुए सभी केंद्रीय मंत्रियों, भाजपा नेताओं और मुख्यमंत्रियों ने भी यही फैसला किया। इसका असर विपक्ष के नेताओं और मुख्यमंत्रियों पर भी पड़ा और उन्होंने भी होली और उसके बाद होने वाले सारे सार्वजनिक कार्यक्रम रद्द कर दिए।  कमोबेश पूरे देश में दस मार्च के बाद से ही स्वघोषित सामाजिक दूरी (सोशल डिस्टेंसिंग) सार्वजनिक चर्चा में आ गई और 20 मार्च तक कई राज्यों ने कोरोना को लेकर अपने अपने स्तर पर सार्वजनिक पाबंदियां लगानी शुरू कर दी थीं।इसकी शुरुआत गैर भाजपा शासित राज्यों ने की।  दिल्ली, छत्तीसगढ़, राजस्थान, महाराष्ट्र, केरल की सरकारों ने अपने अपने राज्यों में लॉकडाउन घोषित कर दिए थे। एकबारगी लगा कि गैर भाजपा शासित राज्यों की इस पहल से कोरोना के खिलाफ लड़ाई को लेकर केंद्र सरकार और भाजपा बैकफुट पर आ जाएंगे।  लेकिन पूरी स्थिति का आकलन करके प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आगे आए और उन्होंने टीवी चैनलों के जरिए देश को संबोधित करते हुए 22 मार्च को पूरे देश से जनता कर्फ्यू लगाने और कोरोना के खिलाफ जंग में अग्रिम मोर्चे पर जूझ रहे चिकित्सकों, नर्सों और अन्य स्वास्थ्य कर्मियों, पुलिस बल एवं सुरक्षा कर्मियों, डिलीवरी ब्वायज, सफाई कर्मियों, मीडिया कर्मियों आदि के सम्मान में शाम पांच बजे अपने घरों की छतों या बाहर खड़े होकर पांच मिनट तक ताली या थाली बजाने का आह्वान करके पूरी पहल अपने हाथ में ले ली।  पूरे देश ने अपने प्रधानमंत्री की इस अपील को सिर माथे लिया और 22 मार्च का जनता कर्फ्यू न सिर्फ ऐतिहासिक रूप से सफल रहा बल्कि देश आम और खास ने बेहिचक ताली और थाली बजाई।  


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